रविवार, दिसंबर 07, 2008

kutoon ke sath bharteey nahee balki neta कुत्तों के संग भारतीय जनता नही ,बल्कि नेता ////////

कुत्तों के संग भारतीय जनता नही ,बल्कि नेता ////////बापू दक्षिणी अफ्रीका मैं रेल से यात्रा करते समय धकेल दिए गए थे .भारतीयों और कुत्तों को रेल की उस विशेष श्रेणी मैं यात्रा की अनुमति नही थी. अब आजादी के ६० साल बाद हालत बदली है.कुत्ते तो वहीं हैं.रेल की जगह रेल्ली है ,और जनता की जगह नेता हैं/यह घटना हुई है ,मुंबई मैं /आतंकवाद के खिलाफ निकली रैली मैं एक पोस्टर पर लिखा था ""इस रैली मैं कुत्तों और नेताओं को आने की अनुमति नही है.नेताओं अब चेतो/जनता ४० किलो का हार भी पहिनाती है ,और वही जनता जूतों की माला भी पहिना सकती है.

ham uttardayee gauohatya ke .aur poojen devon ko उत्तरदायी गौओ हत्या के ,और पूजें हम देवों को ------------

उत्तरदायी गौओ हत्या के ,और पूजें हम देवों को ------------
आजकल मूर्तियाँ ,गाय की हड्डियों से निर्मित होने लगी हैं.यह वस्तिकता प्रकाश मैं लाई हैं प्रसिद्द पशुप्रेमी और पर्यावरणविद मेनकाजी गाँधी.आम,सत्ता सुख भोगनेवाले नेताओं से अलग हस्ती मेनकाजी का कहना है की आकर्षक मूर्तियाँ बने ,इसके लिए स्वस्थ गायों को कत्लखानों में भेजकर ,हड्डियाँ निकलकर ,शोधन के लिए भेजी जातीं हैं.और राम,दुर्गा,कृषण की मूर्तियाँ बनाकर बेचीं जाती हैं.बिकरी मैं इजाफा तब होता है,जब नवरात्री,रामनवमी आदि उत्सव आते हैं.उत्पादकों का कहना है की ये हड्डियाँ गाय की नही बल्कि ऊंट की हैं/क्या तर्क है?अव्वल तो हड्डियों से मूर्तियाँ बने ही क्यों?मेनकाजी का कहना है की देश मैं ऊँटों की इतनी आबादी ही नही है की इतनी मात्र मैं मूर्तियाँ बन सके.मई शंकराचार्यों.,प्रवचनकारों से हाथ जोड़कर निवेदन करता हूँ की भोलीभाली जनता को इस प्रकार की मूर्तियों की पूजा करने से रोकने की सीख देन/

गुरुवार, नवंबर 27, 2008

माँ की गोद मैं शिशु खुश .पौधों पर फूल खुश घर मैं लगे गुलाब पर ४-५ फूल विकसीत हुए .मेरी पत्नी की सहेली ने भगवन पर चढाने के लिए पत्नी से फूल मांगे. पत्नी ने तत्काल मना कर दिया.मैंने कहा की अगर १-२ फूल दे देतीं तो क्या होजाता?पत्नी बोली की मैं रोज इन पौधों को निकटता से देखती हूँ.जिस प्रकार शिशु अपनी माँ की गोद मैं प्रस्सन रहता है उसी प्रकार फूल पौधे पर प्रस्सन रहतें हैं.जब बड़ी देर तक शिशु माँ की गोद से अलग होता है तो माँ और शिशु दोनों बैचेन हो जातें हैं.इसी प्रकार फूल को पौधों से अलग करने पर फूल और पौधे दोनों बैचेन हो जातें हैं.शास्त्र कहतें हैं की हम प्रकृति के विर्रुधकोई काम न करें .मुझे इस बात की कल्पना भी नही थी की पौधों को बड़ा कर ,उनकी सेवा कर अपने आप ऐसी संवेदना उत्पन्न हो जातीं हैं

रविवार, नवंबर 16, 2008

MEEDIA KA MASKHARAPAN

मीडिया का मसखरापन
मीडिया का उद्देश जनता से संवाद स्थाप्पित कर उसकी भावनाओं को प्रदशित करना है .लेकिन मीडिया की गत दिनों बानगी देखी .एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ .मीडिया कर्मी पहुंचे.महिला गंभीर ,दुखी संवेदनाओं से ग्रस्त,शर्म से मर रही ,मीडिया मर्द पूछता है ""आपको सामूहिक बलात्कार के बाद कैसा लगा""महिला शर्म सार.क्या कहे मीडिया कर्मी के सवालों पर गुस्सा करे या उसे नोच डाले?अभी अभी मीडिया ने बाल कलाकार दर्शील सफारी का आत्मविशवास डिगा .दिया.उससे सवाल किया गया की ""प्रियंका चौपडा बिकनी मैं कैसी लगती है""? आप अपने पिताजी से आधिक कमातें हैं तो आपको कैसा लगता है ''? अब यह बल्कलाकर दर्शील जो पाहिले आत्मविशवास से भरा था ,मुखर था अब उतना मुखर नही रहा. मीडिया से दूर रहने लगा? यह मीडिया का मसखरापन है या रचना धर्मिता है?
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naya shabd ""hindu aatankvad""

शास्त्रों मैं आतकवादी समूहों के नामकरण ;""असुर"",""दानव "",""राक्षस"" किए गए हैं.इन पुरातन आतंकवादियों को उनके धरम के आधार पर नामांकित नही किया जाता था.आजकल इस्लामिक आतंकवादी,सिक्ख आतकवादी ,तो तो नामकरण होही गए है.अब नया शब्द ""हिंदू आतंकवादी"" मनो आतंकवादी बन्ने और नम पड़ने की होड़ चल रही हो. क्यों इन्हे इनके धर्म के आधार पर नामांकित किया जाय ?हिंदू,मुस्लमान,सिक्खों की आबादी मैं से इन आतंकवादियों का %कितना है?२%भी नही.फिर इन मुट्ठी भर आतकवादियों के पीछे पुरी कॉम का नामकरण आतंकवादियों के नम से क्यों किया जाय?और ये आतंकवादी युवा किसी बड़े राजनेता,अम्मर या उद्योगपति के पुत्र नही हैं/बल्कि इनकी कोमल भावनाओं को परिवर्तित कर मोड़ दिया गया है.इन युवाओं मैं से अधिकतर बेरोजगार,गरीब,अभावों से ग्रस्त हैं.जरूरत इस बात की है की इन्हे जीवन जीने की सुविधाओं से रूबरू कराया जाय .शिक्षा दी जाय. इन्हे उन्नत और प्रगतिशील जीवन का परिचय कराया जाय/ कॉम के शब्दों से इनका लेबलिंग कदापि न किया जाय

रविवार, नवंबर 09, 2008

ऐश की ग्यारंटी तो है

रेल खिड़की पर तिकिथार्थियों के कतारें यात्रा का महत्व है। सिनेमा खिड़की पर तिकिथार्थियों के कतारें पिक्चर का महत्व है।

दूध देरी की दुकान पर कूपन लिए लोगों की कतारें बिकनेवाले दूध का महत्व है। तौहरों पर बाजारों मैं लगी कतारें तौहरों का महत्व है।

दिल्ली और प्रान्तों की राजधानियों मैं तिकिथार्थियों की कतारें ,विधायक पद का महत्व है।

रेल मैं चढाने पर सिट की ग्यारंटी नही मगर पहुँच जाने की ग्यारंटी तो है।

सिनेमा हल मैं हवा ,पंखे की ग्यारंटी तो नही मगर पिक्चर की ग्यारंटी तो है

दूध देरी पर धक्के मुक्के की ग्यारंटी तो नही मगर दूध की ग्यारंटी तो है

टिकट विधायक का मिल जाने पर ,जीत की ग्यारंटी तो नही ,मगर जीत जो गए ,

तो ऐश की ग्यारंटी तो है/ऐश की ग्यारंटी तो है/

चेचक,सीतलामाता,कुम्हार,गधा.

शास्त्रों,पुरानों परम्पराओं मैं सीतलामाता एक प्रचलित पूजयानीय देवी है.प्रतेयक गाँव,शहर,कसबे मैं इसके ओटले पर बिना छत के रेतीले या देव्त्ये पत्थर होतें हैं.यही सीतलामाता है..सीतलामाता का पुजारी कुम्हार.कुम्हार का व्यावसायिक वाहन गधा.हम्हारे पूर्वजों ने आस्था उपचार तथा अर्थशास्त्र का गणित कैसे बैठाया है.खुम्हार का कार्य मिटटी की चीजें बनाना .दीपक,मटके हवन पात्र ,नांदे,कवेलू आदि। कुम्हार का एक और पारम्परिक पेशा है,घों;घरों मैं जाकर पानी भरना .यानि सब काम ठंडक के.पानी,मिटटी.कुम्हार,दीपक एकदम शांत.भारत मैं ग्रामीण बहुल इलाकों मैं दूर दूर तक सड़क नही ,अस्पताल नही ,.अँधेरी रत मैं किसी का शिशु अचानक बीमार हो जावे,तो माँ आख़िर क्या करे?हमारे पूर्वजों ने आस्था दी है। रंगीन लच्छा बाँध दो.लच्छा नही .साड़ीकी चिंदी फाड़कर,सीतलामाता के नम सकल्प कर लो.आराम से सोजाओ.यह इलाज कितना वैज्ञानिक,कितना तार्किक,कितना वास्तविक है?यह प्रश्न वादविवाद का नही.आस्था का है। शास्त्रों ने तर्कों पर काम और आशाओं पर अधिक बल दिया है.वर्षाकाल के ४ माह कुम्हारआख़िर क्या करता ?उसका कद बढ़ा दिया .वह माता का पुजारी भी है.चढावे पर उसका अधिकार है.आज तक उसके अधिकारों का हनन नही हुआ है.यही माता चेचक के कशातों से मुक्ति दिलाती है। कितना अनुपम है आस्था ,उपचार और अर्थशास्त्र का तालमेल.

रविवार, नवंबर 02, 2008

तीव्र और द्रुत संचार साधनों के बाद भी संवादहीन

दिवाली के बाद दिवाली कैसे गुजारी,कितना आनंद आया,कौन कौन मेहमान आए ,किन किन मित्रों के पुत्र ,पुत्रियाँ आ पाए नही आ पाए.ऐसे विषयों पर चर्चा होती ही है.जिन मित्रों के नन्दलाल और नंद्लालियाँ एन्गीनियरिंग,मेडिकल,या और किसी डिग्री कोर्स के लिए उज्जैन.इंदौर या भोपाल मैं हैं या जो किसी संसथान मैं कार्यरत है और पुणे,मुंबई,अहमदाबाद,बंगलोर मैं हैं हरेक के पास मोबाइल है.यदि ये आपके पास दिवाली मैं मिलाने आए हैं तो इनसे जायदा बातचीत करने का विचार छोड़ दीजिये.कारन यह की गाब तक आप इनसे बात का सिलसिला आगे बढायें इन्हे कल आ जाएगा.बात समाप्त करके ये नाश्ते का एक कौर लें न्लें दूसरा कल आ जाएगा .वापस आप बात आरम्भ करें रिशेतेदारों.नातेदारों के बारे मैं बताएं ,मीठी कैसे बनी ,नमकीन किसने बनाया चर्चा करें तीसरा कल आ जाएगा.स्वाभाविक है आप पूछेंगे .क्या बात है/ जवाब तय्यार है.मम्मी ने कम बताया था'',अंकल को अस्पताल मैं देखने जाना है,पिताजी ने सौदा लेन को कहा थे वैगेरे,वैगेरे .तात्पर्य यह की आप इनसे संवाद स्थापित कर ही नही सकते.और दिन बी दिन इनसे परिचय बढ़ने के बजायपरिचय और आत्मीयता कम होने लगती है। और यदि इनके तातश्री ने इन्हे दोपहिय्या दिलवा दिया है,तब तो क्या कहने ये और अधिक जल्दी मैं .मोबाइल और दोपहिय्यों वाली गाड़ी ने इन्हे बड़ों से संवाद स्थापित करने से वंचित कर दिया है.तीव्र और द्रुत संचार साधनों ने इन्हे संवाद हीन कर दिया है.

गुरुवार, अक्तूबर 30, 2008

हिन्दी भाषा भौतिकी.

हम जानतें हैं की भौतिकी की कई शाखाएँ उनके गुणों और उपयोगों के आधार पर नामांकित की गयी हैं.जैसे नाभिकीय भौतिकी,आण्विक भौतिकी.भवन ध्वानिकी ,आदि। हिन्दी बोलने पर जो ध्वनी निकलती है,वह उसके अक्षर के अनुरूप है.अक्षर और ध्वनी का संबध निश्चित है.हिन्दी भाषा एक वैज्ञानिक,व्यवस्थित,अक्षरानुरूप ध्वनी तरंगे उत्पन्न करने वाली भाषा है.भारत मैं बोली और लिखी जाने वाली भाषाएँ और बोलियाँ हिन्दी से सम्बंधित हैं.यदि हिन्दी अक्षरों की बनावट से मिलती,जुलती मिटटी,धातु,चीन मित्तिया प्लास्टर आफ पेरिस की प्रतिक्रतियां बनाई जाय और उनमे हिन्दी अक्षरों की ध्वनी प्रवाहित की जाय तो एक नई शाखा विकसित होगी.भौतिकी की इस नयी शाखा का नाम होगा;"हिन्दी भाषा भौतिकी"या हिन्दी भाषा ध्वनिकी", हमारे देश के वैज्ञानिक प्रखर,प्रज्ञावान और मितव्ययी हैं.आय.पी.अल.क्रिकेट लीग के मेच मैं जितना खर्चा होता है उसके १०प्रतिशत व्यय मैं चंद्रयान सफलता पूर्वक छोड़ दिया गया.यदि इन्हे 'हिन्दीभाषा भौतिकी"या हिन्दी ध्वनिकी को विकसित करने का जिम्मा चेतावनी के रूप मैं दे दिया जे तो हिन्दी को लोकप्रियता का दर्जा दिलवा देंगे। हिन्दी मैं न केवल भारतीय भाषा बन्ने का मदद है बल्कि वह अन्तार्रशात्रिय भाषा बन जायेगी.हिन्दी वैसे ही सरल,सहज वैज्ञानिक,और बोधगम्य भाषा है। देश की सभी भाषाओँ की तुलना मैं जब यह सहज समाज ली जायेगी तो सुविधा की द्रस्ती से पुरा देश इसे अपना लेगा.भाषाई झगडें अपने आप समाप्त हो जायेंगे.हमारे नेता नौकरशाह हिन्दी मैं सोचना आरम्भ कर देंगे । तो आइये हम विचार करें भौतिक शास्त्र की एक नयी शाखा पर 'हिन्दीभाषा भौतिकी ',या हिन्दी ध्वनिकी पर.हमारे मित्रों,भौतिकी केप्राध्यापकों ,वाद्द्य्यंत्रों के निर्माताओं ,से इस संभावनाओं पर प्रश्न करें । और सहभागी बने एक सरल,सुगम,सहज.वज्ञानिक भाषा के विकास के महायज्ञं मैं.

लओत्सू और आर्क्क्मिदिज

लओत्सू एक दिन मछली का शिकार करने गया.उसने मछली को आकर्षित करने वाली खाने की वास्तु को डोरी के एक सिरे पर बाँध कर डोरी पानी मैं दल दी और लकड़ी पकड़कर बैठ गया/ मछली तेजी से आई और वास्तु खाकर भाग गयी। अब उसने फिर से वास्तु बंधी और लकड़ी पकड़कर बैठा/अबकी बार उसने लकड़ी को कसकर पकड़ा। मछली फिर से आई .वस्तु खाई और भाग गई.लओत्सू ने फिर से वही तैयारी की और लकड़ी पकड़कर बैठ गया.अब की बार उसने लकड़ी बहुत धीरे से पकड़ी ,मछली आई,वस्तु तो खा गई,लकड़ी भी पानी मैं गिर गयी.लओत्सू ने फिर से तैय्यारी की/अबकी बार उसने लकड़ी को न तो कसकर पकड़ा और न एकदम धीरे पकड़ा /संतुलन,साम्य,सचेत.अब जैसे ही मछलीआई ,लओत्सू शांत बैठा रहा ,मछली वस्तु खाती रही,खाती रही,खाने मैं व्यस्त हो गई ,कांटे को जड़ता,कातरता,,मैं उलझ गई ,लओत्सू ने तुंरत उसे उठा लिया.एक सूत्र लाप्त्सू ने पकड़ लिया.उसने एक दर्शन ,एक विचार.एक अवधारणा कायम कर दी.यदि सफल होना है तो किसी विचार,किसी दर्शन ,को जड़ होकर न पकडो.और न उसे उपेक्षा भावः से देखो.संतुलन मैं रहो.इसी प्रकार आर्कमिडीज ने देखा की वस्तुं पानी के ठीक ऊपर तभी तैरतीं हैं जब उनकी किस्म और आकारका चयन इस प्रकार किया जाय की पानी द्वारा लगाये गए उत्प्लावन बल के बराबर वस्तु का भार हो जाय .वही संतुलन ,साम्य अवस्था.लओत्सू और आर्क्मी.एक ही नतीजे पर पहुंचतें है.एक दर्शनशास्त्र मैं एक भौतिकी मैं .

मंगलवार, अक्तूबर 28, 2008

आशा की किरण है स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया/

अमेरिका,इंग्लॅण्ड,की बड़ी बड़ी बैंकों ने अपने दिवाले निकाल दिए/वैश्विक वित्त संकट के चलते कई कम्पनियां घातेंमैं आ गई/इस घबराई स्थिथि मैं अस.बी.ई.और जी.बी.नी ने शान से अपना सर ऊँचा उठाया है/जब शेयर मार्केट का आंकडा ८५०० से नीचे जा रहा था तब अस.बी.ई। ने जरी वित्त वर्ष मैं प्रथम तिमाही मैं २२५०करोद का शुद्ध मुनाफा कमाया/हमारे देश मैं इतना तलेंट है की वित्त प्रबंधन सीक्खने के लिए हमें किसी बाहरी देशों के प्रशिक्षण की जरूरत नही /जरूत इस बात की है हमारी सरकार इन संस्थाओं मैं हस्तक्षेप न करें और बैंकिंग तथा बीमा क्षेत्रों मैं विदेशी संस्थाओं को जायदा हिस्सेदारी नदे /

थोक मैं सेवक

४ राज्यों के विधानसभाओं के प्रत्याशिचायण मैं उम्मीदवारों की भीड़ देखने काबिल है/ समर्थकों , राल्लिओं,धोल्धामाकों के साथ ये सेवा के इच्छुक पौंच रहें हैं/शहरों के चौराहों पट बड़े बड़े फ्लक्स,आदमकद बोर्ड .कीबाढ़ आ गई है/इन सेवकों को सेवा की इतनी उत्कट इच्छा है की टिकट के लिए इनके तर्क और मुद्दे गौर करने के काबिल हैं/मैं पाटीदार हूँ,मैं ब्रह्मण हूँ,मैं बलि हूँ ,मैं राजपूत हूँ,लोधी हूँ,मुस्लिम हूँ,आदि आदि तर्क/ इनके डेव ,प्रतिदावे देखकर आख़िर सवाल पैदा होता है की ये सेवा के इतने उत्सुक क्यों हैं?यदि दलों के शीर्ष नेताओं को इनसे निजात पाना हो तो एक तरीका है/ जो पहली बार टिकट के लिए आवेदन कर रहा हो,उसे एक वर्ष के लिए सेवा के क्षेत्र मैं जन होगा/जैसे कोसी की बढ़,कम पेय्जल्वाले क्षेत्र,शिक्षा से वंचित क्षेत्र,आदि/एनअस.अस.मैं २४०घन्ते सेवाकार्य करने पर प्रमाणपत्र दिया जाता है,अनसीसी .मैं ४५ परेड पर परीक्षा मैं बैठने की पात्रता आती है/इसी प्रकार सेवा के इच्छुक इन प्रत्याशियों के लिए भी कोई न कोई मापदंड निर्धारित होना चाहिए /कम से कम गजर्घन्सके उन्मूलन मैं,प्राथमिक शाला के बच्चों को पढाने मैं तो इनकी उपयोगिता सिद्ध हो/ और इन्हे जो प्रमाणपत्र जरी हों वे किसी संस्था से न होकर न्यायालय के द्वारा नियुक्त न्यायाधीश महोदय से हों /

रविवार, अक्तूबर 26, 2008

मौसम ख़राब तो उडानरद्द

साध्वी श्रीजी शंताकुंवार्जी.म.सा। ने सम्ताशिक्षा निकेतन मैं छात्र और छात्रों को दीपवालिपुर्व उद्बोधन मैं कही//आपने छात्रों को सीख दी की छात्र जीवन से गुटके,सुपारी,पुच खाने की आदत से बचें/ इनमें जो घटक मिलाये जातें हैं ,वे मांस,खून,हड्डे,ह्रदय.,लिवर,किडनी,आदि में मिलकर उन्हें नष्टकरते हैं/प्रतिदिन हमारा शरीर कमजोर,जीर्ण शीर्ण होने लगता है/स्नायु तंत्र,स्म्रुतितंत्र आखों की ज्योति ,साँस तंत्र ख़राब होने लागतें हैं/नयी नयी बीमारियाँ घेरने लगती है/हवाई जहाज जब उडान भरता है तो पिओलेट को नियंत्रक से इजाजत लेना पड़ती है/यदि मौसम ख़राब हो तो उद्दान रद्द कर दी जाती है /इसी प्रकार जब हमारे शरीर का मौसम ख़राब हो,स्नायु तंत्र ,ख़राब हो तो हम जीवन मैं ऊँची उडान नही भर सकते/ सध्विश्रीजी म.सा। ने अपने उद्बोधन मैं छात्रों से पूछा की आप मैं से कितने छात्र पटाखे छोड़ते हैं/आपने बताया की पटाखे छोड़ने से कई छोटे पशु,पक्षी अंधे और बहरे हो जातें हैं/छते बच्चे घटक पटाखों से अपने हाथ पैर जला बैठते हैं /पटाखे छोड़ने से जो गैसों का उत्सर्जन होता है वह वायुमंडल को दूषित करता है /छात्रों ने आपको भरोसा दिलाया की की इस वर्ष दिवाली पर हम पटाखे कम मात्र मैं छोडेंगे/और बची धनराशी ,कक्षा के कमजोर छात्रों के लिए देंगे/देश मैं व्याप्त हिंसक,आतंकी आगजनी,तोड़फोड़,बंद,जामआदि घटनाओं के चलते म.सा.इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार आदमियों.नेताओं ,संस्थाओं का नम लिए बैगेर एक सकारात्मक वातावरण बनने मैं अपनी भूमिका निभाती हैं/४;४ और ५;५ की.मी। पैदल चलकर कठिन तपस्वी जीवन की दिनचर्या मैं से समय निकलकर छात्रों को सरल.सहज, भाषा मैं प्रवचन देती हैं/

शुक्रवार, अक्तूबर 24, 2008

महाबलियों के गाँव से आये ,बजाने चैन की बंसी

बिहार के चुनाव क्षेत्र सीवान और छपरा महाबलियों, बाहुबलियों के चुनाव क्षेत्र हैं/बिहार और खासकर बाहुबलियों के क्षेत्र के हलचल हम मालवा मैं बैठकर पता नही कर सकते/ इन क्षेत्रों से लकड़ी की बंशी बनने वाले और उसे बजाकर बतानेवाले लोग म.प्र। के निमाड़ क्षेत्र मैं आए /ये कलाकार इतनी खूबसूरती से बंधी बजतें हैं की किसी भी फिल्मी गाने,भजन आदि को आराम से,सहज रूप से गा देते हैं / जिजीविषा का संघर्ष देखिये की कहाँ बिहार का सीवान और छपरा और कहाँ म.प्र.का निमाड़/ उल्लेखनीय यह है की इन यायावरी जीवन काटकर अपनी रोजी कमानेवाले दोनों कौमों के हिंदू और मुस्लमान हैं इनमें कभी भी झगडे नही होते / बाहुबली लोगों की जीवनशली और अपर संपत्ति छाहे चैन की बंसी न बजेनेदे ,मगर ये गरीब कलाकार अपने फुनसे और कौशल से अपना पेट तो भरतें हैं ,हमारा मनोरंजन भी करतें हैं /बाहुबली बंशी तोड़ सकतें हैं बजा नही सकते/और ये गरीब ख़ुद चैन से रहतें हैं और हमें चैन से रहने का संदेश देतें हैं/

शनिवार, अक्तूबर 18, 2008

मुहिमें थोक मैं नही बल्कि रिटेल मैं जारी हों

अक्सर अखबारों मैं समाचार आतें हैं की पुलिस ने सत्ता विरोधी कार्यवाही के तहत धड पकड़ शुरू कर देही/२०००रुपयोन के साथ ४ सत्तेवाले पकड़ लिए गए /३ भागने मैं सफल हो गए/जिला प्रशाशन और नगर निगम ने संयुक्त रूप से अतिक्रमण विरोधी मुहीम आरम्भ कर दी है/आईटी विभाग ने एक साथ इतने सरे शहरों मैं छापेमारकर इतने करोड़ रुप्पये बिना टैक्स के पकड़े/रेल विभाग ने बिना टिकट यात्रा करनेवालों को धर दबोचा और इतने रु। का राजस्व्व वसूला/ परिवहन विभाग ने अभियान चलाकर बिना नम्बर की इतनी गाडियां पकडीं /ये मुहिमें केवल मुहिमें ही बनकर रह जातीं हैं/और जैसे ही ये मुहिमें बंद हुई की ''शांतता कोर्ट चालू आहे ''की तरह सत्ता ,अतिक्रमण ,बिनातिकट यात्रा,कालाबाजारी, मिलावट जमाखोरी जोश;खरोश के साथ शुरू हो जाती है/बजायमुहीम के प्रतिदिन एक बाज़ार मैं एक अतिक्रमंकर्ता को पकड़कर चालित न्यायलय १५ दिन की सजा देदे,अतिक्रमण तोड़ दे और पुलिस और निगम का अमला अपना रोज का काम करे/दूसरी जगह पुलिस को मालूम है कहाँ पर ,सत्ता खेलनेवाले को पकड़ ले ,और उस जगह को सील कर दे/रेल विभाग किसी फ्लग स्टेशन पर गाडी रोक ले ,बिना टिकेट वालों को गाडी मैं लगी जेल मैं ही बंद कर दे या जुरमाना वसूल कर ले/ पेट्रोल पम्प पर चेकिंग कर उसे सील कर देन/ मुहीम कभी भी न चलायें /थोक मैं न पकडें /रिटेल मैं पकडें /हालतें सुधरेंगी/

अपना दोष सजा काबिल,दुसरे का माफी काबिल

वैसे अक्सर यह देखने मैं आता है की हम अपने दोषों को दोष नही मानते और दुसरे के दोषों ,गलतियों को न केवल दोष और गलती मानतें हैं बल्कि दंडनीय भी मानते हैं/खासकर अस्पतालों मैं डॉक्टरों और नुरसों के साथ दुर्व्यवहार की शिकायतें आम हैं /भीड़ तंत्र और भीड़ मानसिकता का आलम यह है की यदि मरीज की मृत्यु इलाज के दौरान अस्पताल मैं हो जाती है तो मरीज के परिजन भीड़ बनाकर अस्पताल मैं हंगामा कर देते हैं और डॉक्टरों तथा नुरसों के साथ गली गलोज यहाँ तक की मारपीट तक कर बैठते हैं/इसी प्रकार थानों पर अपने रिश्तेदार की गिरफतारी को अवैध बताकर ठाणे का घेराव करते हैं/ इन घटनाओं के चलते कोल्कता से एक अच्छा समाचार मिला है/ एक महिला रोगी का आपरेशन करते समय एक डॉक्टर से गलती हो गई /अपनी लापरवाही के लिए वे ख़ुद को जवाबदार मानते हुए ठाणे पर गए और स्वयं के लिए सजा की मांग की /और स्वयं ने स्वयं के खिलाफ ऍफ़.ई.आर.दर्ज करवाई/विशेष उल्लेखनीय यह है की महिला रोगी के परिजनों को डॉक्टर से कोई शिकायत नही है/अब पुलिस परेशां है की इस प्रकार के प्रकरण को जिसमें इमानदार डॉक्टर हो और संतोषी परिजन हों ,मामले को आख़िर कैसे निप्तायाजय /बुद्दः,महावीर,गांधी का यह देश एक न एक दिन दुनिया को क्षमाशीलता का संदेश देगा /

मंगलवार, अक्तूबर 14, 2008

बिना सलाह-मशविरे के आज्ञां ऐं जारी न करें

आजकल धर्म के जानकारों के द्वारा सीधे आदेश जारीकरेने की परम्परा सी हो गयी है /यदि कोई आदमी कोई विशष विवादित या चर्चित कृत्यकर जाता है तो ये धर्माचार्य किसी महापुरुष,अवतार,संदेशवाहक के जीवन का हवाला देकर उस कृत्य को सही सिद्ध कराने का आदेश जारी कर देते हैं/ एक अखबार के मुताबिक ६० वर्षीय एक आदमी ने ९ वर्षीय बालिका के साथ विवाह रचाया/ शायद समाज मैं इस कृत्य की आलोचना हुई होगी/ ये सज्जन धर्माचार्य के पास गए/तत्काल धर्माचार्य ने एक पुज्ज्यनीय और महान महापुरुष के जीवन से उदहारण निकालकर बताया की चूँकि उन्होंने भी ९ वर्षीय से विवाह रचाया था इसलिए यह आदमी भी सही है/ यह और ऐसी आज्ञां समाज और मानवता के हित मैं नही हैं/आदेश जारी करने के पूर्व अपने समकक्ष बल्कि अपनेसे ऊँचे दर्जे के स्वधार्मीय विद्वानों से सलाह मशविरा कर लेना कोई बुरी बात नही है/

पीड़ित समाज का विरोध प्रशंसनीय

गौतम बुद्धकी देशना है ''अत्तनो अत्ता दीपं भव: ''अपने दीपक आप बनो/ ''अपना मार्ग आप खोजो /रतलाम ,म.प्र। के वाल्मीकि समाज के एक पधाधिकारी ने यह उदहारण प्रस्तुत किया है /राष्ट्रीय वाल्मीकि जन विकास मंच के महासचिव श्री प्रदीप्चंद करासिया ने लोकसभा उपाध्यक्ष श्री चरंजीत्सिंह के नेतृत्व मैं ,समाज के सदस्यों के साथ प्रधानमंत्रीजी को एक ज्ञापनदिया जिसमे अन्यान्य समस्याओं के साथ एक मांग यह भी थी की वाल्मीकि समाज बहुल बस्तियों मैं शराब की दुकानें खोलने की अनुमती नही दी जाए /हालाँकि सरकारें तत्काल यह मांग मंजूर नही करेंगी ,फिर भी इस सामाजिक बुराईके खिलाफ श्री करासिया का एक संदेश जाएगा/करासियाजी,आप समाज की एक बैठक लेकर ,महिलाओं को इस बात का जिम्मा देदें तो यह समस्या जल्दी हल होगी/यदि ऐसा सम्भव हुआ तो वाल्मीकि समाज अन्य समाजों को भी एक उदहारण प्रस्तुत करेगा /गौतम बुद्ध ने २५००वर्श पूर्व कहा है आप किसी के सहारा से, किसी के उपदेश से ,किसी की कृपा से विकसित नही होंगे आपको स्वयमको अपना दीपक बनाना होगा और खुदको ही अंधेरे से बहार लाना होगा /

सोमवार, अक्तूबर 13, 2008

पशु पक्षियों मैं अनुकूलन

अक्सर रेतीले,मैदानी,वनाच्छादित,पठारी तथा विभिन्न भौगोलिक वातावरण मैं रहनेवाले जीव जंतु कुदरत के साथ अनुकूलन मैं होते हैं/जैसे बर्फीले इलाके मैं सफेद भेडें सफेद शेर ,वनाच्छादित इलाके मैं हरे सांप ,रेगिस्तानी इलाके मैं खाकी रंग के जीव जंतु ,पक्षी आदि/इन जंतुओं मैं अपना भोजन करने,दाना चुगने की आदतें भी इलाके के अनुसार अनुकूलन मैं होती हैं /छतीसगढ़ मैं धान खूब होता है/ इसे धान का कटोरा कहा जाता है/इस इलाके मैं चिडियों को धान चुगने की आदत होती है /जब धान की फसल कट कर घरों मैं आ जाती है तो चिदियांयेंक्या खाएं /वहां के लोगों को ,इसकी चिंता थी/वे धान की बालियों को सुई धागे से सीकर एक आयताकार रचना बनाकर घर के बरामदों,छत ,खेत पर झोंपडियों पर तंग देते हैं/ पक्षी बड़े आनंद से उड़ते उड़ते दाना चुग लेतेहैं/मगर जब यही रचना मैंने अपने घर मैं रतलाम मैं लटकन के रूप मैं तंगी टी पुरे एक वर्ष तक कोई पक्षी धान की और आकर्षित नही हुआ/म० प्र० और खासकर मालवा मैं धान होता ही नही /इन पक्षियों मैं धान खाने की न तो आदत होती है और न उसे धुन्धने की प्रवृति होती है /ये भोजन की आदत मैं भी अनुकूलन मैं होते हैं /

रविवार, अक्तूबर 12, 2008

सुक्ख और दुखः एक दुसरे के पूरक

जगी सर्व सुखी असा कोण आहे,विचारे मन तूची शोधुनी पाहे /संत रामदास --सब्बे संसारा दुखती/गौतम बुद्ध---दुखिया सब संसार ---संत कबीर/यह जगत दुख्हों की खान है/ हम मंत्री नही इसका हमें गम है/जो मंत्री है उसे मुख्य मंत्री नही होने का गम है /लालूजी मायावतीजी,आद्वानीजी प्रधानमत्री बननेको तैयार हैं /कोई शुखी नही/ हम कहाँ सुखीं हैं/ हमें और धन चाहिए/ हम जितने साधन बटोर रहें हैं ,ये कौनसा सुख हमें देंगे /कचरा बटोर रहें हैं /मगर ये दुख ,कहीं कहीं सुख भी छिपाए हैं /हमारे आभाव ,हमारी कमजोरियां ,हमारे दुःख नयी संभावनाओं को जनम देते हैं /हमारी आकांक्षाएं नयी संभावनाओं को जनम देती हैं/दुःख हमें रास्ता दिखाते हैं /गौतम के दुःख ने ,गाँधी के दुःख ने हमें रास्ता दिखाया /मगर हम हैं जो दुःख से उपजे सुख को नही उठा सकते /हम बुद्ध को नकारेंगे ,गाँधी को नकारेंगे ,और अंततः दुखी होंगे /प्रमाणित यही होता है की सुख और दुःख एक दुसरे के पूरक हैं

जैसी सांगत वैसे रंगत

बात उन दिनों की है जब रतलाम की सज्जन मिल बंद हुई थी ,जैसी इंदौर,उज्जैन अहमदाबाद आदि की बंद हुई थी/मेरे ताल मंजिल वाले फ्लैट की बालकनी मई बैठकर अख़बार पड़ रहा था ,सामने खुली जमीन के मैदान मैं एकपागल या विक्षिप्त आदमी कभी अपने हाथों को ऊपर कभी नीचे कभी बाएं कभी दायें ले जाता/बड़ी देर तक ऐसा करता रहा/ मैंने एक प्लेट मैं दो तिन रोटी ,सब्जी और नमकीन ले जाकर उसे दिया/उसने प्लेट को छुआ तक नही और अपनी विक्षिप्त हरकतें करता रहा /उन दिनों संवेदनशील मजदूर पागल्नुमा हो गए थे /और मजदूर नेता टाइप मस्तीयाँ छान रहे थे /अचानक कहीं आग लग जाने से आग बुझाने वाली गाड़ी सायरन बजाते आई /मेरी पत्नी ने कहा भाई अब खाना खालो मिल का सायरन बज गया है /उसने तत्काल कम बंद किया और हाथ धोये /और पानी माँगा /रोटी का एक टुकडा कुटी को दिया और खाना आरम्भ किया / और खाना खाकर थली सापफ कर चला गया /जैसी सांगत वैसी रंगत

गुरुवार, सितंबर 25, 2008

आतंक से मुक्ति पाना है /सम्यक स्थिथि अपनैएया/

महात्मा बुद्ध की देशना है की यदि शान्ति से रहना है तो सम्यक स्थिति अपनाएं.हम पेंडुलम की गति त्यागें/पेंडुलम को जब गति दी जाती है तो वह बायीं और या दायीं और जाता है/जब वह बायीं और जाता है तो उस पर मध्यमान स्थिति की तरफ एक बल लगता है ,वह वहां रुकता नही बल्कि दायीं और जाता है मगर उस पर एक बल लगता है जो उसे मध्यमान स्थिति की और लता है वह मध्यमान स्थिति पर रुकता नही /इस प्रकार जब वह बायीं और होता है तो वह मध्यमान स्थिति की और आने को उर्जित होता है मगर चला जाता है दायीं और ,जब दायीं और होता है तो उर्जित होता है मध्यमान के लिए मगर चला जाता है बायीं और/हमारी स्तिति कमोबेश इस पेंडुलम की तरह है/हम यदि शहर मैं रहते हैं तो हम गाँव को पसंद करते हैं/ग्रामीण लोग शहर पसंद करतें हैं /हम मरीज हैं तो डॉक्टर बनना पसंद करतें हैं /जब डॉक्टर बन जाते हैं तो परेशां/रोज मरीज,दवाईयां ,सुई /खाने,पीने,घुमने का समय नही /बीबी बच्चों की शिकायतें अलग/जब हम ग्राहक होते हैं तो दुकानदार बनना पसंद करतें हैं मगर जब दुकानदार बन जाते हैं तो परेशां .दुकान,ग्राहक,हम्माल,सेलटेक्स का निरीशक ,समय नही। परिवार के साथ मोज मस्ती करने जाओ तो पास का दुकानदार ग्राहक तोड़ दे उसका डर /शादी.सगाई,किसी की अन्तिम क्रिया मैं जाओ तो दुकान है की पीछा छोड़ती नही/आज दुनिया मैं जो आतंक है उसके पीछे यही पेंडुलम की गति है/हम जहाँ हैं वहां रहना ही नही चाहते .हम या तो वामपंथी होंगे या दक्षिणपंथी /अति धर्मंद होंगे या धर्मनिरपेक्ष /अति सम्पन्नता है या अति दरिद्रता/कहीं शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं का अम्बर है या कहीं आभाव है/हमें सम्यक स्थिति को अपनाना होगा/महात्मा बुद्ध सरीखे प्रखर,प्रज्ञावान प्रगतिशील अवतार की देशना है सम्यक स्थिति या अशतंग मार्ग/अष्टांग मार्ग है;;;;सम्यक-द्रस्ती/सम्यक संकल्प /सम्यक वाणी/सम्यक आजीव /सम्यक व्यायाम/सम्यक समृति/सम्यक समाधी/सम्यक कर्मान्त/ यदि शान्ति चाहिए तो सम्यक आचरण आप्नना होगा/ इसके लिए बुद्ध धर्मं अपनाना जरूरी नही /आचरण मैं सम्यक स्थिति लाना होगी/

शनिवार, सितंबर 20, 2008

१से९ की संख्याएँ प्राकृतिक क्यों कहलातीं हैं ?

१ से ९ तक संख्यां प्राकृतिक क्यों कहलाती हैं?इसका कारन है की मानव ने कुदरती तौर पर अपनी उँगलियों से गिनती करना सीखा/मगर यह व्यापक नजरिया नही है/टोकियो यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने प्रयोगों से प्रमाणित किया है की हाथी ,घोडे,बन्दर,मचली भी १से९ तक की गिनती जानते हैं /जीवशास्त्री कारेनमेक्काम्ब ने बताया की शेरोन को इसका ज्ञान है/एक प्रयोग मैं बंदरों को परदे पर विभ्हीं न गिनतियों के ३५ समूह बताये गए /५केले २सेव्फ़ल ,७ बिस्कुट /उन्हें प्रशिक्षित किया गया /इन बंदरों ने इन वस्तुओं को बढ़ते क्रम मैं रखा/चाइना मैं फिश के शिकार के लिए कर्मोरेंट नाम के पक्षी को प्रशिक्षित किया जाता है/जब वह ७ फिश पकड़ लेता है तो उसे एक फिश खाने को दी जाती है/उसके पाहिले उसके गले के रिंग ढीली कर दी जाती है/गाब यह कर्मोरेंट पक्षी ७ फिश लाकर रखता उसके बाद उड़ता ही नही/जब तक की उसके गले के रिंग ढीले न के जायऔर उसे १ फिश न दी जाय /भगवन ने यह प्रकृति केवल हमारे मानव प्रजाति के लिए बनाई है ,ऐसा नही है/१से९ तक के नम्बर केवल इसलिए प्राकृतिक नही हैं की मानव ने इसे सीखा बल्कि पशु ,पक्षी भी कुदरती तौर पर १से९ तक गिनना जानते हैं/इसलिए १से९ प्राकृतिक संख्याएँ हैं

शुक्रवार, जून 27, 2008

संघनन की दुकानें होंगी हर शहर मैं

संघनन का मतलब है फैले हुए पदार्थ का इक्कठा होना / लोहे की चादर को पीट पीट कर टुकडा बनाया जा सकता है/ उबलते पानी की भाप को कूकर मैं संघनीत किया जा सकता है/ अब कारों ,जीपों ,को भी आदुनिक तरकीबों से संघनीत किया जाएगा / आप किसी बड़े शहर मैं गए कार पसंद की उसे संघनीत करवा ली और रेलगाडी मैं सूटकेस केआकाररखा दी/ वापस अपने शहर मैं आए/ ८/१० कुलियों की मदद से कर को उत्र्वा ली /और अपने शहर की दोकान से वापस उसे विस्तृत करवा लिया

रविवार, जून 01, 2008

बायल का नियम राजनीती मैं

नेपाल मैं राजतन्त्र का अंतत ;सफाया हो गया/२४० साल की राजशाही संपत हो गई /२४० साल से जनता पर दवाब था /दवाब इतना बढ़ा की जनता का आयतन काम हो गया /मतलब जनता पिसती चली गयी। जिस रजा को लोर्ड़ विष्णु की तरह पूजा जाता था ,उसे १५ दिन मैं राजमहल खाली करना है/बायल के का नियम है दवाब बढ़ने से आयतन कम होता है/दवाब कम होने से आयतन बढ़ता है/राजशाही का दवाब कम हुआ ,जनता की उम्मीदें बढ़ी/ नेपाल की नयी सरकार यह न भूले की जनता जिसे पूजती है उसे निन्दित भी करती है/ टीवी पर हमने लेनिन और मार्क्स के पुतलों की ,हिटलर के पुतलों की, सद्दाम हुसैन के पुतलों की जो दुर्गति जनता ने की वह हमने देखी है/ प्रचंड सरकार को बधाई देते हुए हम उम्मीद करते हैं की उनकी सरकार बायल के नियम को याद/ रखेगी

बुधवार, मई 28, 2008

हमारा विकास या विनाश

हम प्रगति करते जा रहें हैं/मोबैल क्रांति,इंटरनेट से कोर बेन्किंग, ईमेल बेन्किंग आदि रोज्मर्रह की बातें हो गई हैं/ परन्तु क्या हम विनाश की और नाहीं जा रहें हैं/परमाणु शक्ति सम्प्पन देश यदि ५ या ६ विस्फोट करदें तो पता है कितनी उर्जा पैदा होगी /१००दिग्री पर पानी उबलता है/२५०० दिग्रीसे पाहिले सब धातुएं पिघलती हैं/ विस्फोट से २/ ३ करोड़ डिग्री ऐ की गरमी पैदा होगी/ प्राणी जगत .वनस्पती जगत ,पहाडों की क्या स्थिथी होगी ? नेपाल ,इराक इरान दो ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान भारत ,इस्रैएल लगभग सभी देश किसी न किसी समस्या से दो दो दो हाथ कर रहें हैं/ क्या हम विकास की और हैं या विनाश की और हैं?

रविवार, मई 25, 2008

निजध्यासन

भौतिकी मैं अनुनाद की घटना बताई जाती है/जिसके अनुसार बार बार धवनी तरंगे उसी अव्रती से कहीं टकराती हैं तोविधवंस पैदा करती हैं/इसलिए किसी पुल से मार्च करते समय सैनिकों को कदम तोड़कर चलने को कहा जाता है ताकि पुल टूट न जाए/स्वामी सुख्बोधानान्दजी कहतें हैं की इसके विपरीत कुच्छ धवनी तरेंगे हैं जो रचनात्मक उर्जा पैदा कराती हैं/वेदांत के मंत्रों का जाप याchएंटिंग की जाय और उचित आरोह आव्रोह के साथ की जाय तो साधक को उर्जा मिलाती है /इसे निजध्यासन कहतें हैं/शास्त्रों मैं प्रमाण हैं /

गुरूत्व के कारन वस्तुओं का नीचे की और गिरना

गुरुत्व के कारन वस्तुएं ऊपर से नीचे की और गिरती हैं.इसी तरह ईमानदारी और बेईमानी भी ऊपर से नीचे की और आती हैं/यदि उपरी स्तर पर इमानदारी होगी तो निचले स्तर पर इमानदारी अपने आप आएगी/ सर्व शिक्षा अभियान भ्रस्ताचार की भेंट गया ऐसी रिपोर्टें हैं/इस अभियान मैं प्राईमरी या हायेरseकेंदरी का कोई शिक्षक नकद लें देन मैं नही था/ फिर अखबार नवींसो ने जो राशी भ्रस्ताचार के भेंट गई बताया है वह ऊपर के हथं मैं गई या निचे के हाथों मैं /पकी तोर पर वह उपरी हातों से होती, शिक्षक से भिन्न किसी दुसरे हाथों तक पहुँची होगी/

मंगलवार, मई 20, 2008

शास्त्र वार्ता कलम में विज्ञान सम्मत मुद्दौं को ,नियमों को परिकल्पनाओं को अव्धार्नाओं को देशज भाषा में लिखने की प्रेरणा रवि रतलामी के हिन्दी ब्लाग से मिली.भौतिकी में लेंत्ज़ का नियम है की प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होती है की वह उस कारन का विरोध कराती है जिसके कारन वह पैदा होती है/राजनीती में पुराना नेता किसी नोजवान को आगे लाकर जब सफल नेता बनाकर उसे बड़े पद पर ले आता है तोवह उसी का विरोध करता हँ/माँऔर बाप बेटों को पैदा कर,बड़ा करते हैं ,खूब पढ़ते और लिखातेंहैं ,वो बेटे उन्हीं माँ और बाप का जनरेशन गेप कहकर उनका विरोध करते हैं /लेंत्ज़ का नियम कितना सही है/

पहला प्रयास

यह मेरा पहला प्रयास है/पढाते समय जो जो बातें सामने आई हैं उन्हें मैं लिखता रहूंगा.