रविवार, अक्तूबर 12, 2008

सुक्ख और दुखः एक दुसरे के पूरक

जगी सर्व सुखी असा कोण आहे,विचारे मन तूची शोधुनी पाहे /संत रामदास --सब्बे संसारा दुखती/गौतम बुद्ध---दुखिया सब संसार ---संत कबीर/यह जगत दुख्हों की खान है/ हम मंत्री नही इसका हमें गम है/जो मंत्री है उसे मुख्य मंत्री नही होने का गम है /लालूजी मायावतीजी,आद्वानीजी प्रधानमत्री बननेको तैयार हैं /कोई शुखी नही/ हम कहाँ सुखीं हैं/ हमें और धन चाहिए/ हम जितने साधन बटोर रहें हैं ,ये कौनसा सुख हमें देंगे /कचरा बटोर रहें हैं /मगर ये दुख ,कहीं कहीं सुख भी छिपाए हैं /हमारे आभाव ,हमारी कमजोरियां ,हमारे दुःख नयी संभावनाओं को जनम देते हैं /हमारी आकांक्षाएं नयी संभावनाओं को जनम देती हैं/दुःख हमें रास्ता दिखाते हैं /गौतम के दुःख ने ,गाँधी के दुःख ने हमें रास्ता दिखाया /मगर हम हैं जो दुःख से उपजे सुख को नही उठा सकते /हम बुद्ध को नकारेंगे ,गाँधी को नकारेंगे ,और अंततः दुखी होंगे /प्रमाणित यही होता है की सुख और दुःख एक दुसरे के पूरक हैं