रविवार, सितंबर 13, 2015

रतलाम (म.प्र )के झाबुआ जिले की पेटलावद तहसील में अत्यंत दुःख दायक और हिलादेनेवाली दुर्घटना हुई है. एक होटल मेंरखी गैस टंकी केफट जाने से इतनी भाषण दुर्घटना की आशका किसी को नहीं रही होगी.शायद ७०-८०के मरने की आशंका है. पास में एक मकान में लायसेंस शुदा जिलेटिन की छड़ें भी थीं। अब इस घटना के बाद भी हम कोई सबक लेते हैं या नहीं?कुछ बातें जो नियमानुसार होनी चाहिए वे हैं.(१)रहवासी इलाकों में पेट्रोल पंप,गैस की दुकानेन हों(२)स्प्रिट,जिलेटिन,एसिड चाहे लायसेंस की हों गोदाम के रूप में रहवासी इलाकों में न हो. (३)होटलों ,गैस एजेंसिओं ,बड़े दफ्तरों में अग्नि विरोधी /शमन यंत्र दिखावे के लिए न हो. (४)फायर ड्रिल हर संस्थान में अनिवार्य रूप से हो.

आजादी के इतने वर्षों बाद,साक्षरता के लिए इतना विपुल धन खर्च करने के बाद हम अभी तकछोटी छोटी बातें सीख नहीं पाए. बीएस दुर्घटना हो जाए ,मुखमंत्री,की और से मृतकों,घायलों को मुआवजा दे दिया जाय ,मामला खत्म.कभी टाकीज ,हादसा,कभी भगदड़ के कारण हादसा ,कभी पंडाल गिरने से हादसा ,हादसा रुकने के नाम नही.upaay नही. आजकल तो रहवासी इलाकों में जहाँ खुली जगह हो वहां गैस कंपनी वाले टंकिया जमाकर वहीं से टंकी बाटने का काम कर लेते हैं. आखिर उस इलाके के पार्षद,पञ्च भी ठडे बहुत जवाबदार हैं या नही.