गुरुवार, अक्तूबर 30, 2008

हिन्दी भाषा भौतिकी.

हम जानतें हैं की भौतिकी की कई शाखाएँ उनके गुणों और उपयोगों के आधार पर नामांकित की गयी हैं.जैसे नाभिकीय भौतिकी,आण्विक भौतिकी.भवन ध्वानिकी ,आदि। हिन्दी बोलने पर जो ध्वनी निकलती है,वह उसके अक्षर के अनुरूप है.अक्षर और ध्वनी का संबध निश्चित है.हिन्दी भाषा एक वैज्ञानिक,व्यवस्थित,अक्षरानुरूप ध्वनी तरंगे उत्पन्न करने वाली भाषा है.भारत मैं बोली और लिखी जाने वाली भाषाएँ और बोलियाँ हिन्दी से सम्बंधित हैं.यदि हिन्दी अक्षरों की बनावट से मिलती,जुलती मिटटी,धातु,चीन मित्तिया प्लास्टर आफ पेरिस की प्रतिक्रतियां बनाई जाय और उनमे हिन्दी अक्षरों की ध्वनी प्रवाहित की जाय तो एक नई शाखा विकसित होगी.भौतिकी की इस नयी शाखा का नाम होगा;"हिन्दी भाषा भौतिकी"या हिन्दी भाषा ध्वनिकी", हमारे देश के वैज्ञानिक प्रखर,प्रज्ञावान और मितव्ययी हैं.आय.पी.अल.क्रिकेट लीग के मेच मैं जितना खर्चा होता है उसके १०प्रतिशत व्यय मैं चंद्रयान सफलता पूर्वक छोड़ दिया गया.यदि इन्हे 'हिन्दीभाषा भौतिकी"या हिन्दी ध्वनिकी को विकसित करने का जिम्मा चेतावनी के रूप मैं दे दिया जे तो हिन्दी को लोकप्रियता का दर्जा दिलवा देंगे। हिन्दी मैं न केवल भारतीय भाषा बन्ने का मदद है बल्कि वह अन्तार्रशात्रिय भाषा बन जायेगी.हिन्दी वैसे ही सरल,सहज वैज्ञानिक,और बोधगम्य भाषा है। देश की सभी भाषाओँ की तुलना मैं जब यह सहज समाज ली जायेगी तो सुविधा की द्रस्ती से पुरा देश इसे अपना लेगा.भाषाई झगडें अपने आप समाप्त हो जायेंगे.हमारे नेता नौकरशाह हिन्दी मैं सोचना आरम्भ कर देंगे । तो आइये हम विचार करें भौतिक शास्त्र की एक नयी शाखा पर 'हिन्दीभाषा भौतिकी ',या हिन्दी ध्वनिकी पर.हमारे मित्रों,भौतिकी केप्राध्यापकों ,वाद्द्य्यंत्रों के निर्माताओं ,से इस संभावनाओं पर प्रश्न करें । और सहभागी बने एक सरल,सुगम,सहज.वज्ञानिक भाषा के विकास के महायज्ञं मैं.

लओत्सू और आर्क्क्मिदिज

लओत्सू एक दिन मछली का शिकार करने गया.उसने मछली को आकर्षित करने वाली खाने की वास्तु को डोरी के एक सिरे पर बाँध कर डोरी पानी मैं दल दी और लकड़ी पकड़कर बैठ गया/ मछली तेजी से आई और वास्तु खाकर भाग गयी। अब उसने फिर से वास्तु बंधी और लकड़ी पकड़कर बैठा/अबकी बार उसने लकड़ी को कसकर पकड़ा। मछली फिर से आई .वस्तु खाई और भाग गई.लओत्सू ने फिर से वही तैयारी की और लकड़ी पकड़कर बैठ गया.अब की बार उसने लकड़ी बहुत धीरे से पकड़ी ,मछली आई,वस्तु तो खा गई,लकड़ी भी पानी मैं गिर गयी.लओत्सू ने फिर से तैय्यारी की/अबकी बार उसने लकड़ी को न तो कसकर पकड़ा और न एकदम धीरे पकड़ा /संतुलन,साम्य,सचेत.अब जैसे ही मछलीआई ,लओत्सू शांत बैठा रहा ,मछली वस्तु खाती रही,खाती रही,खाने मैं व्यस्त हो गई ,कांटे को जड़ता,कातरता,,मैं उलझ गई ,लओत्सू ने तुंरत उसे उठा लिया.एक सूत्र लाप्त्सू ने पकड़ लिया.उसने एक दर्शन ,एक विचार.एक अवधारणा कायम कर दी.यदि सफल होना है तो किसी विचार,किसी दर्शन ,को जड़ होकर न पकडो.और न उसे उपेक्षा भावः से देखो.संतुलन मैं रहो.इसी प्रकार आर्कमिडीज ने देखा की वस्तुं पानी के ठीक ऊपर तभी तैरतीं हैं जब उनकी किस्म और आकारका चयन इस प्रकार किया जाय की पानी द्वारा लगाये गए उत्प्लावन बल के बराबर वस्तु का भार हो जाय .वही संतुलन ,साम्य अवस्था.लओत्सू और आर्क्मी.एक ही नतीजे पर पहुंचतें है.एक दर्शनशास्त्र मैं एक भौतिकी मैं .

मंगलवार, अक्तूबर 28, 2008

आशा की किरण है स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया/

अमेरिका,इंग्लॅण्ड,की बड़ी बड़ी बैंकों ने अपने दिवाले निकाल दिए/वैश्विक वित्त संकट के चलते कई कम्पनियां घातेंमैं आ गई/इस घबराई स्थिथि मैं अस.बी.ई.और जी.बी.नी ने शान से अपना सर ऊँचा उठाया है/जब शेयर मार्केट का आंकडा ८५०० से नीचे जा रहा था तब अस.बी.ई। ने जरी वित्त वर्ष मैं प्रथम तिमाही मैं २२५०करोद का शुद्ध मुनाफा कमाया/हमारे देश मैं इतना तलेंट है की वित्त प्रबंधन सीक्खने के लिए हमें किसी बाहरी देशों के प्रशिक्षण की जरूरत नही /जरूत इस बात की है हमारी सरकार इन संस्थाओं मैं हस्तक्षेप न करें और बैंकिंग तथा बीमा क्षेत्रों मैं विदेशी संस्थाओं को जायदा हिस्सेदारी नदे /

थोक मैं सेवक

४ राज्यों के विधानसभाओं के प्रत्याशिचायण मैं उम्मीदवारों की भीड़ देखने काबिल है/ समर्थकों , राल्लिओं,धोल्धामाकों के साथ ये सेवा के इच्छुक पौंच रहें हैं/शहरों के चौराहों पट बड़े बड़े फ्लक्स,आदमकद बोर्ड .कीबाढ़ आ गई है/इन सेवकों को सेवा की इतनी उत्कट इच्छा है की टिकट के लिए इनके तर्क और मुद्दे गौर करने के काबिल हैं/मैं पाटीदार हूँ,मैं ब्रह्मण हूँ,मैं बलि हूँ ,मैं राजपूत हूँ,लोधी हूँ,मुस्लिम हूँ,आदि आदि तर्क/ इनके डेव ,प्रतिदावे देखकर आख़िर सवाल पैदा होता है की ये सेवा के इतने उत्सुक क्यों हैं?यदि दलों के शीर्ष नेताओं को इनसे निजात पाना हो तो एक तरीका है/ जो पहली बार टिकट के लिए आवेदन कर रहा हो,उसे एक वर्ष के लिए सेवा के क्षेत्र मैं जन होगा/जैसे कोसी की बढ़,कम पेय्जल्वाले क्षेत्र,शिक्षा से वंचित क्षेत्र,आदि/एनअस.अस.मैं २४०घन्ते सेवाकार्य करने पर प्रमाणपत्र दिया जाता है,अनसीसी .मैं ४५ परेड पर परीक्षा मैं बैठने की पात्रता आती है/इसी प्रकार सेवा के इच्छुक इन प्रत्याशियों के लिए भी कोई न कोई मापदंड निर्धारित होना चाहिए /कम से कम गजर्घन्सके उन्मूलन मैं,प्राथमिक शाला के बच्चों को पढाने मैं तो इनकी उपयोगिता सिद्ध हो/ और इन्हे जो प्रमाणपत्र जरी हों वे किसी संस्था से न होकर न्यायालय के द्वारा नियुक्त न्यायाधीश महोदय से हों /

रविवार, अक्तूबर 26, 2008

मौसम ख़राब तो उडानरद्द

साध्वी श्रीजी शंताकुंवार्जी.म.सा। ने सम्ताशिक्षा निकेतन मैं छात्र और छात्रों को दीपवालिपुर्व उद्बोधन मैं कही//आपने छात्रों को सीख दी की छात्र जीवन से गुटके,सुपारी,पुच खाने की आदत से बचें/ इनमें जो घटक मिलाये जातें हैं ,वे मांस,खून,हड्डे,ह्रदय.,लिवर,किडनी,आदि में मिलकर उन्हें नष्टकरते हैं/प्रतिदिन हमारा शरीर कमजोर,जीर्ण शीर्ण होने लगता है/स्नायु तंत्र,स्म्रुतितंत्र आखों की ज्योति ,साँस तंत्र ख़राब होने लागतें हैं/नयी नयी बीमारियाँ घेरने लगती है/हवाई जहाज जब उडान भरता है तो पिओलेट को नियंत्रक से इजाजत लेना पड़ती है/यदि मौसम ख़राब हो तो उद्दान रद्द कर दी जाती है /इसी प्रकार जब हमारे शरीर का मौसम ख़राब हो,स्नायु तंत्र ,ख़राब हो तो हम जीवन मैं ऊँची उडान नही भर सकते/ सध्विश्रीजी म.सा। ने अपने उद्बोधन मैं छात्रों से पूछा की आप मैं से कितने छात्र पटाखे छोड़ते हैं/आपने बताया की पटाखे छोड़ने से कई छोटे पशु,पक्षी अंधे और बहरे हो जातें हैं/छते बच्चे घटक पटाखों से अपने हाथ पैर जला बैठते हैं /पटाखे छोड़ने से जो गैसों का उत्सर्जन होता है वह वायुमंडल को दूषित करता है /छात्रों ने आपको भरोसा दिलाया की की इस वर्ष दिवाली पर हम पटाखे कम मात्र मैं छोडेंगे/और बची धनराशी ,कक्षा के कमजोर छात्रों के लिए देंगे/देश मैं व्याप्त हिंसक,आतंकी आगजनी,तोड़फोड़,बंद,जामआदि घटनाओं के चलते म.सा.इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार आदमियों.नेताओं ,संस्थाओं का नम लिए बैगेर एक सकारात्मक वातावरण बनने मैं अपनी भूमिका निभाती हैं/४;४ और ५;५ की.मी। पैदल चलकर कठिन तपस्वी जीवन की दिनचर्या मैं से समय निकलकर छात्रों को सरल.सहज, भाषा मैं प्रवचन देती हैं/

शुक्रवार, अक्तूबर 24, 2008

महाबलियों के गाँव से आये ,बजाने चैन की बंसी

बिहार के चुनाव क्षेत्र सीवान और छपरा महाबलियों, बाहुबलियों के चुनाव क्षेत्र हैं/बिहार और खासकर बाहुबलियों के क्षेत्र के हलचल हम मालवा मैं बैठकर पता नही कर सकते/ इन क्षेत्रों से लकड़ी की बंशी बनने वाले और उसे बजाकर बतानेवाले लोग म.प्र। के निमाड़ क्षेत्र मैं आए /ये कलाकार इतनी खूबसूरती से बंधी बजतें हैं की किसी भी फिल्मी गाने,भजन आदि को आराम से,सहज रूप से गा देते हैं / जिजीविषा का संघर्ष देखिये की कहाँ बिहार का सीवान और छपरा और कहाँ म.प्र.का निमाड़/ उल्लेखनीय यह है की इन यायावरी जीवन काटकर अपनी रोजी कमानेवाले दोनों कौमों के हिंदू और मुस्लमान हैं इनमें कभी भी झगडे नही होते / बाहुबली लोगों की जीवनशली और अपर संपत्ति छाहे चैन की बंसी न बजेनेदे ,मगर ये गरीब कलाकार अपने फुनसे और कौशल से अपना पेट तो भरतें हैं ,हमारा मनोरंजन भी करतें हैं /बाहुबली बंशी तोड़ सकतें हैं बजा नही सकते/और ये गरीब ख़ुद चैन से रहतें हैं और हमें चैन से रहने का संदेश देतें हैं/

शनिवार, अक्तूबर 18, 2008

मुहिमें थोक मैं नही बल्कि रिटेल मैं जारी हों

अक्सर अखबारों मैं समाचार आतें हैं की पुलिस ने सत्ता विरोधी कार्यवाही के तहत धड पकड़ शुरू कर देही/२०००रुपयोन के साथ ४ सत्तेवाले पकड़ लिए गए /३ भागने मैं सफल हो गए/जिला प्रशाशन और नगर निगम ने संयुक्त रूप से अतिक्रमण विरोधी मुहीम आरम्भ कर दी है/आईटी विभाग ने एक साथ इतने सरे शहरों मैं छापेमारकर इतने करोड़ रुप्पये बिना टैक्स के पकड़े/रेल विभाग ने बिना टिकट यात्रा करनेवालों को धर दबोचा और इतने रु। का राजस्व्व वसूला/ परिवहन विभाग ने अभियान चलाकर बिना नम्बर की इतनी गाडियां पकडीं /ये मुहिमें केवल मुहिमें ही बनकर रह जातीं हैं/और जैसे ही ये मुहिमें बंद हुई की ''शांतता कोर्ट चालू आहे ''की तरह सत्ता ,अतिक्रमण ,बिनातिकट यात्रा,कालाबाजारी, मिलावट जमाखोरी जोश;खरोश के साथ शुरू हो जाती है/बजायमुहीम के प्रतिदिन एक बाज़ार मैं एक अतिक्रमंकर्ता को पकड़कर चालित न्यायलय १५ दिन की सजा देदे,अतिक्रमण तोड़ दे और पुलिस और निगम का अमला अपना रोज का काम करे/दूसरी जगह पुलिस को मालूम है कहाँ पर ,सत्ता खेलनेवाले को पकड़ ले ,और उस जगह को सील कर दे/रेल विभाग किसी फ्लग स्टेशन पर गाडी रोक ले ,बिना टिकेट वालों को गाडी मैं लगी जेल मैं ही बंद कर दे या जुरमाना वसूल कर ले/ पेट्रोल पम्प पर चेकिंग कर उसे सील कर देन/ मुहीम कभी भी न चलायें /थोक मैं न पकडें /रिटेल मैं पकडें /हालतें सुधरेंगी/

अपना दोष सजा काबिल,दुसरे का माफी काबिल

वैसे अक्सर यह देखने मैं आता है की हम अपने दोषों को दोष नही मानते और दुसरे के दोषों ,गलतियों को न केवल दोष और गलती मानतें हैं बल्कि दंडनीय भी मानते हैं/खासकर अस्पतालों मैं डॉक्टरों और नुरसों के साथ दुर्व्यवहार की शिकायतें आम हैं /भीड़ तंत्र और भीड़ मानसिकता का आलम यह है की यदि मरीज की मृत्यु इलाज के दौरान अस्पताल मैं हो जाती है तो मरीज के परिजन भीड़ बनाकर अस्पताल मैं हंगामा कर देते हैं और डॉक्टरों तथा नुरसों के साथ गली गलोज यहाँ तक की मारपीट तक कर बैठते हैं/इसी प्रकार थानों पर अपने रिश्तेदार की गिरफतारी को अवैध बताकर ठाणे का घेराव करते हैं/ इन घटनाओं के चलते कोल्कता से एक अच्छा समाचार मिला है/ एक महिला रोगी का आपरेशन करते समय एक डॉक्टर से गलती हो गई /अपनी लापरवाही के लिए वे ख़ुद को जवाबदार मानते हुए ठाणे पर गए और स्वयं के लिए सजा की मांग की /और स्वयं ने स्वयं के खिलाफ ऍफ़.ई.आर.दर्ज करवाई/विशेष उल्लेखनीय यह है की महिला रोगी के परिजनों को डॉक्टर से कोई शिकायत नही है/अब पुलिस परेशां है की इस प्रकार के प्रकरण को जिसमें इमानदार डॉक्टर हो और संतोषी परिजन हों ,मामले को आख़िर कैसे निप्तायाजय /बुद्दः,महावीर,गांधी का यह देश एक न एक दिन दुनिया को क्षमाशीलता का संदेश देगा /

मंगलवार, अक्तूबर 14, 2008

बिना सलाह-मशविरे के आज्ञां ऐं जारी न करें

आजकल धर्म के जानकारों के द्वारा सीधे आदेश जारीकरेने की परम्परा सी हो गयी है /यदि कोई आदमी कोई विशष विवादित या चर्चित कृत्यकर जाता है तो ये धर्माचार्य किसी महापुरुष,अवतार,संदेशवाहक के जीवन का हवाला देकर उस कृत्य को सही सिद्ध कराने का आदेश जारी कर देते हैं/ एक अखबार के मुताबिक ६० वर्षीय एक आदमी ने ९ वर्षीय बालिका के साथ विवाह रचाया/ शायद समाज मैं इस कृत्य की आलोचना हुई होगी/ ये सज्जन धर्माचार्य के पास गए/तत्काल धर्माचार्य ने एक पुज्ज्यनीय और महान महापुरुष के जीवन से उदहारण निकालकर बताया की चूँकि उन्होंने भी ९ वर्षीय से विवाह रचाया था इसलिए यह आदमी भी सही है/ यह और ऐसी आज्ञां समाज और मानवता के हित मैं नही हैं/आदेश जारी करने के पूर्व अपने समकक्ष बल्कि अपनेसे ऊँचे दर्जे के स्वधार्मीय विद्वानों से सलाह मशविरा कर लेना कोई बुरी बात नही है/

पीड़ित समाज का विरोध प्रशंसनीय

गौतम बुद्धकी देशना है ''अत्तनो अत्ता दीपं भव: ''अपने दीपक आप बनो/ ''अपना मार्ग आप खोजो /रतलाम ,म.प्र। के वाल्मीकि समाज के एक पधाधिकारी ने यह उदहारण प्रस्तुत किया है /राष्ट्रीय वाल्मीकि जन विकास मंच के महासचिव श्री प्रदीप्चंद करासिया ने लोकसभा उपाध्यक्ष श्री चरंजीत्सिंह के नेतृत्व मैं ,समाज के सदस्यों के साथ प्रधानमंत्रीजी को एक ज्ञापनदिया जिसमे अन्यान्य समस्याओं के साथ एक मांग यह भी थी की वाल्मीकि समाज बहुल बस्तियों मैं शराब की दुकानें खोलने की अनुमती नही दी जाए /हालाँकि सरकारें तत्काल यह मांग मंजूर नही करेंगी ,फिर भी इस सामाजिक बुराईके खिलाफ श्री करासिया का एक संदेश जाएगा/करासियाजी,आप समाज की एक बैठक लेकर ,महिलाओं को इस बात का जिम्मा देदें तो यह समस्या जल्दी हल होगी/यदि ऐसा सम्भव हुआ तो वाल्मीकि समाज अन्य समाजों को भी एक उदहारण प्रस्तुत करेगा /गौतम बुद्ध ने २५००वर्श पूर्व कहा है आप किसी के सहारा से, किसी के उपदेश से ,किसी की कृपा से विकसित नही होंगे आपको स्वयमको अपना दीपक बनाना होगा और खुदको ही अंधेरे से बहार लाना होगा /

सोमवार, अक्तूबर 13, 2008

पशु पक्षियों मैं अनुकूलन

अक्सर रेतीले,मैदानी,वनाच्छादित,पठारी तथा विभिन्न भौगोलिक वातावरण मैं रहनेवाले जीव जंतु कुदरत के साथ अनुकूलन मैं होते हैं/जैसे बर्फीले इलाके मैं सफेद भेडें सफेद शेर ,वनाच्छादित इलाके मैं हरे सांप ,रेगिस्तानी इलाके मैं खाकी रंग के जीव जंतु ,पक्षी आदि/इन जंतुओं मैं अपना भोजन करने,दाना चुगने की आदतें भी इलाके के अनुसार अनुकूलन मैं होती हैं /छतीसगढ़ मैं धान खूब होता है/ इसे धान का कटोरा कहा जाता है/इस इलाके मैं चिडियों को धान चुगने की आदत होती है /जब धान की फसल कट कर घरों मैं आ जाती है तो चिदियांयेंक्या खाएं /वहां के लोगों को ,इसकी चिंता थी/वे धान की बालियों को सुई धागे से सीकर एक आयताकार रचना बनाकर घर के बरामदों,छत ,खेत पर झोंपडियों पर तंग देते हैं/ पक्षी बड़े आनंद से उड़ते उड़ते दाना चुग लेतेहैं/मगर जब यही रचना मैंने अपने घर मैं रतलाम मैं लटकन के रूप मैं तंगी टी पुरे एक वर्ष तक कोई पक्षी धान की और आकर्षित नही हुआ/म० प्र० और खासकर मालवा मैं धान होता ही नही /इन पक्षियों मैं धान खाने की न तो आदत होती है और न उसे धुन्धने की प्रवृति होती है /ये भोजन की आदत मैं भी अनुकूलन मैं होते हैं /

रविवार, अक्तूबर 12, 2008

सुक्ख और दुखः एक दुसरे के पूरक

जगी सर्व सुखी असा कोण आहे,विचारे मन तूची शोधुनी पाहे /संत रामदास --सब्बे संसारा दुखती/गौतम बुद्ध---दुखिया सब संसार ---संत कबीर/यह जगत दुख्हों की खान है/ हम मंत्री नही इसका हमें गम है/जो मंत्री है उसे मुख्य मंत्री नही होने का गम है /लालूजी मायावतीजी,आद्वानीजी प्रधानमत्री बननेको तैयार हैं /कोई शुखी नही/ हम कहाँ सुखीं हैं/ हमें और धन चाहिए/ हम जितने साधन बटोर रहें हैं ,ये कौनसा सुख हमें देंगे /कचरा बटोर रहें हैं /मगर ये दुख ,कहीं कहीं सुख भी छिपाए हैं /हमारे आभाव ,हमारी कमजोरियां ,हमारे दुःख नयी संभावनाओं को जनम देते हैं /हमारी आकांक्षाएं नयी संभावनाओं को जनम देती हैं/दुःख हमें रास्ता दिखाते हैं /गौतम के दुःख ने ,गाँधी के दुःख ने हमें रास्ता दिखाया /मगर हम हैं जो दुःख से उपजे सुख को नही उठा सकते /हम बुद्ध को नकारेंगे ,गाँधी को नकारेंगे ,और अंततः दुखी होंगे /प्रमाणित यही होता है की सुख और दुःख एक दुसरे के पूरक हैं

जैसी सांगत वैसे रंगत

बात उन दिनों की है जब रतलाम की सज्जन मिल बंद हुई थी ,जैसी इंदौर,उज्जैन अहमदाबाद आदि की बंद हुई थी/मेरे ताल मंजिल वाले फ्लैट की बालकनी मई बैठकर अख़बार पड़ रहा था ,सामने खुली जमीन के मैदान मैं एकपागल या विक्षिप्त आदमी कभी अपने हाथों को ऊपर कभी नीचे कभी बाएं कभी दायें ले जाता/बड़ी देर तक ऐसा करता रहा/ मैंने एक प्लेट मैं दो तिन रोटी ,सब्जी और नमकीन ले जाकर उसे दिया/उसने प्लेट को छुआ तक नही और अपनी विक्षिप्त हरकतें करता रहा /उन दिनों संवेदनशील मजदूर पागल्नुमा हो गए थे /और मजदूर नेता टाइप मस्तीयाँ छान रहे थे /अचानक कहीं आग लग जाने से आग बुझाने वाली गाड़ी सायरन बजाते आई /मेरी पत्नी ने कहा भाई अब खाना खालो मिल का सायरन बज गया है /उसने तत्काल कम बंद किया और हाथ धोये /और पानी माँगा /रोटी का एक टुकडा कुटी को दिया और खाना आरम्भ किया / और खाना खाकर थली सापफ कर चला गया /जैसी सांगत वैसी रंगत