महात्मा बुद्ध की देशना है की यदि शान्ति से रहना है तो सम्यक स्थिति अपनाएं.हम पेंडुलम की गति त्यागें/पेंडुलम को जब गति दी जाती है तो वह बायीं और या दायीं और जाता है/जब वह बायीं और जाता है तो उस पर मध्यमान स्थिति की तरफ एक बल लगता है ,वह वहां रुकता नही बल्कि दायीं और जाता है मगर उस पर एक बल लगता है जो उसे मध्यमान स्थिति की और लता है वह मध्यमान स्थिति पर रुकता नही /इस प्रकार जब वह बायीं और होता है तो वह मध्यमान स्थिति की और आने को उर्जित होता है मगर चला जाता है दायीं और ,जब दायीं और होता है तो उर्जित होता है मध्यमान के लिए मगर चला जाता है बायीं और/हमारी स्तिति कमोबेश इस पेंडुलम की तरह है/हम यदि शहर मैं रहते हैं तो हम गाँव को पसंद करते हैं/ग्रामीण लोग शहर पसंद करतें हैं /हम मरीज हैं तो डॉक्टर बनना पसंद करतें हैं /जब डॉक्टर बन जाते हैं तो परेशां/रोज मरीज,दवाईयां ,सुई /खाने,पीने,घुमने का समय नही /बीबी बच्चों की शिकायतें अलग/जब हम ग्राहक होते हैं तो दुकानदार बनना पसंद करतें हैं मगर जब दुकानदार बन जाते हैं तो परेशां .दुकान,ग्राहक,हम्माल,सेलटेक्स का निरीशक ,समय नही। परिवार के साथ मोज मस्ती करने जाओ तो पास का दुकानदार ग्राहक तोड़ दे उसका डर /शादी.सगाई,किसी की अन्तिम क्रिया मैं जाओ तो दुकान है की पीछा छोड़ती नही/आज दुनिया मैं जो आतंक है उसके पीछे यही पेंडुलम की गति है/हम जहाँ हैं वहां रहना ही नही चाहते .हम या तो वामपंथी होंगे या दक्षिणपंथी /अति धर्मंद होंगे या धर्मनिरपेक्ष /अति सम्पन्नता है या अति दरिद्रता/कहीं शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं का अम्बर है या कहीं आभाव है/हमें सम्यक स्थिति को अपनाना होगा/महात्मा बुद्ध सरीखे प्रखर,प्रज्ञावान प्रगतिशील अवतार की देशना है सम्यक स्थिति या अशतंग मार्ग/अष्टांग मार्ग है;;;;सम्यक-द्रस्ती/सम्यक संकल्प /सम्यक वाणी/सम्यक आजीव /सम्यक व्यायाम/सम्यक समृति/सम्यक समाधी/सम्यक कर्मान्त/ यदि शान्ति चाहिए तो सम्यक आचरण आप्नना होगा/ इसके लिए बुद्ध धर्मं अपनाना जरूरी नही /आचरण मैं सम्यक स्थिति लाना होगी/
गुरुवार, सितंबर 25, 2008
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