गुरुवार, नवंबर 27, 2008

माँ की गोद मैं शिशु खुश .पौधों पर फूल खुश घर मैं लगे गुलाब पर ४-५ फूल विकसीत हुए .मेरी पत्नी की सहेली ने भगवन पर चढाने के लिए पत्नी से फूल मांगे. पत्नी ने तत्काल मना कर दिया.मैंने कहा की अगर १-२ फूल दे देतीं तो क्या होजाता?पत्नी बोली की मैं रोज इन पौधों को निकटता से देखती हूँ.जिस प्रकार शिशु अपनी माँ की गोद मैं प्रस्सन रहता है उसी प्रकार फूल पौधे पर प्रस्सन रहतें हैं.जब बड़ी देर तक शिशु माँ की गोद से अलग होता है तो माँ और शिशु दोनों बैचेन हो जातें हैं.इसी प्रकार फूल को पौधों से अलग करने पर फूल और पौधे दोनों बैचेन हो जातें हैं.शास्त्र कहतें हैं की हम प्रकृति के विर्रुधकोई काम न करें .मुझे इस बात की कल्पना भी नही थी की पौधों को बड़ा कर ,उनकी सेवा कर अपने आप ऐसी संवेदना उत्पन्न हो जातीं हैं

रविवार, नवंबर 16, 2008

MEEDIA KA MASKHARAPAN

मीडिया का मसखरापन
मीडिया का उद्देश जनता से संवाद स्थाप्पित कर उसकी भावनाओं को प्रदशित करना है .लेकिन मीडिया की गत दिनों बानगी देखी .एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ .मीडिया कर्मी पहुंचे.महिला गंभीर ,दुखी संवेदनाओं से ग्रस्त,शर्म से मर रही ,मीडिया मर्द पूछता है ""आपको सामूहिक बलात्कार के बाद कैसा लगा""महिला शर्म सार.क्या कहे मीडिया कर्मी के सवालों पर गुस्सा करे या उसे नोच डाले?अभी अभी मीडिया ने बाल कलाकार दर्शील सफारी का आत्मविशवास डिगा .दिया.उससे सवाल किया गया की ""प्रियंका चौपडा बिकनी मैं कैसी लगती है""? आप अपने पिताजी से आधिक कमातें हैं तो आपको कैसा लगता है ''? अब यह बल्कलाकर दर्शील जो पाहिले आत्मविशवास से भरा था ,मुखर था अब उतना मुखर नही रहा. मीडिया से दूर रहने लगा? यह मीडिया का मसखरापन है या रचना धर्मिता है?
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naya shabd ""hindu aatankvad""

शास्त्रों मैं आतकवादी समूहों के नामकरण ;""असुर"",""दानव "",""राक्षस"" किए गए हैं.इन पुरातन आतंकवादियों को उनके धरम के आधार पर नामांकित नही किया जाता था.आजकल इस्लामिक आतंकवादी,सिक्ख आतकवादी ,तो तो नामकरण होही गए है.अब नया शब्द ""हिंदू आतंकवादी"" मनो आतंकवादी बन्ने और नम पड़ने की होड़ चल रही हो. क्यों इन्हे इनके धर्म के आधार पर नामांकित किया जाय ?हिंदू,मुस्लमान,सिक्खों की आबादी मैं से इन आतंकवादियों का %कितना है?२%भी नही.फिर इन मुट्ठी भर आतकवादियों के पीछे पुरी कॉम का नामकरण आतंकवादियों के नम से क्यों किया जाय?और ये आतंकवादी युवा किसी बड़े राजनेता,अम्मर या उद्योगपति के पुत्र नही हैं/बल्कि इनकी कोमल भावनाओं को परिवर्तित कर मोड़ दिया गया है.इन युवाओं मैं से अधिकतर बेरोजगार,गरीब,अभावों से ग्रस्त हैं.जरूरत इस बात की है की इन्हे जीवन जीने की सुविधाओं से रूबरू कराया जाय .शिक्षा दी जाय. इन्हे उन्नत और प्रगतिशील जीवन का परिचय कराया जाय/ कॉम के शब्दों से इनका लेबलिंग कदापि न किया जाय

रविवार, नवंबर 09, 2008

ऐश की ग्यारंटी तो है

रेल खिड़की पर तिकिथार्थियों के कतारें यात्रा का महत्व है। सिनेमा खिड़की पर तिकिथार्थियों के कतारें पिक्चर का महत्व है।

दूध देरी की दुकान पर कूपन लिए लोगों की कतारें बिकनेवाले दूध का महत्व है। तौहरों पर बाजारों मैं लगी कतारें तौहरों का महत्व है।

दिल्ली और प्रान्तों की राजधानियों मैं तिकिथार्थियों की कतारें ,विधायक पद का महत्व है।

रेल मैं चढाने पर सिट की ग्यारंटी नही मगर पहुँच जाने की ग्यारंटी तो है।

सिनेमा हल मैं हवा ,पंखे की ग्यारंटी तो नही मगर पिक्चर की ग्यारंटी तो है

दूध देरी पर धक्के मुक्के की ग्यारंटी तो नही मगर दूध की ग्यारंटी तो है

टिकट विधायक का मिल जाने पर ,जीत की ग्यारंटी तो नही ,मगर जीत जो गए ,

तो ऐश की ग्यारंटी तो है/ऐश की ग्यारंटी तो है/

चेचक,सीतलामाता,कुम्हार,गधा.

शास्त्रों,पुरानों परम्पराओं मैं सीतलामाता एक प्रचलित पूजयानीय देवी है.प्रतेयक गाँव,शहर,कसबे मैं इसके ओटले पर बिना छत के रेतीले या देव्त्ये पत्थर होतें हैं.यही सीतलामाता है..सीतलामाता का पुजारी कुम्हार.कुम्हार का व्यावसायिक वाहन गधा.हम्हारे पूर्वजों ने आस्था उपचार तथा अर्थशास्त्र का गणित कैसे बैठाया है.खुम्हार का कार्य मिटटी की चीजें बनाना .दीपक,मटके हवन पात्र ,नांदे,कवेलू आदि। कुम्हार का एक और पारम्परिक पेशा है,घों;घरों मैं जाकर पानी भरना .यानि सब काम ठंडक के.पानी,मिटटी.कुम्हार,दीपक एकदम शांत.भारत मैं ग्रामीण बहुल इलाकों मैं दूर दूर तक सड़क नही ,अस्पताल नही ,.अँधेरी रत मैं किसी का शिशु अचानक बीमार हो जावे,तो माँ आख़िर क्या करे?हमारे पूर्वजों ने आस्था दी है। रंगीन लच्छा बाँध दो.लच्छा नही .साड़ीकी चिंदी फाड़कर,सीतलामाता के नम सकल्प कर लो.आराम से सोजाओ.यह इलाज कितना वैज्ञानिक,कितना तार्किक,कितना वास्तविक है?यह प्रश्न वादविवाद का नही.आस्था का है। शास्त्रों ने तर्कों पर काम और आशाओं पर अधिक बल दिया है.वर्षाकाल के ४ माह कुम्हारआख़िर क्या करता ?उसका कद बढ़ा दिया .वह माता का पुजारी भी है.चढावे पर उसका अधिकार है.आज तक उसके अधिकारों का हनन नही हुआ है.यही माता चेचक के कशातों से मुक्ति दिलाती है। कितना अनुपम है आस्था ,उपचार और अर्थशास्त्र का तालमेल.

रविवार, नवंबर 02, 2008

तीव्र और द्रुत संचार साधनों के बाद भी संवादहीन

दिवाली के बाद दिवाली कैसे गुजारी,कितना आनंद आया,कौन कौन मेहमान आए ,किन किन मित्रों के पुत्र ,पुत्रियाँ आ पाए नही आ पाए.ऐसे विषयों पर चर्चा होती ही है.जिन मित्रों के नन्दलाल और नंद्लालियाँ एन्गीनियरिंग,मेडिकल,या और किसी डिग्री कोर्स के लिए उज्जैन.इंदौर या भोपाल मैं हैं या जो किसी संसथान मैं कार्यरत है और पुणे,मुंबई,अहमदाबाद,बंगलोर मैं हैं हरेक के पास मोबाइल है.यदि ये आपके पास दिवाली मैं मिलाने आए हैं तो इनसे जायदा बातचीत करने का विचार छोड़ दीजिये.कारन यह की गाब तक आप इनसे बात का सिलसिला आगे बढायें इन्हे कल आ जाएगा.बात समाप्त करके ये नाश्ते का एक कौर लें न्लें दूसरा कल आ जाएगा .वापस आप बात आरम्भ करें रिशेतेदारों.नातेदारों के बारे मैं बताएं ,मीठी कैसे बनी ,नमकीन किसने बनाया चर्चा करें तीसरा कल आ जाएगा.स्वाभाविक है आप पूछेंगे .क्या बात है/ जवाब तय्यार है.मम्मी ने कम बताया था'',अंकल को अस्पताल मैं देखने जाना है,पिताजी ने सौदा लेन को कहा थे वैगेरे,वैगेरे .तात्पर्य यह की आप इनसे संवाद स्थापित कर ही नही सकते.और दिन बी दिन इनसे परिचय बढ़ने के बजायपरिचय और आत्मीयता कम होने लगती है। और यदि इनके तातश्री ने इन्हे दोपहिय्या दिलवा दिया है,तब तो क्या कहने ये और अधिक जल्दी मैं .मोबाइल और दोपहिय्यों वाली गाड़ी ने इन्हे बड़ों से संवाद स्थापित करने से वंचित कर दिया है.तीव्र और द्रुत संचार साधनों ने इन्हे संवाद हीन कर दिया है.