सोमवार, अक्तूबर 13, 2008

पशु पक्षियों मैं अनुकूलन

अक्सर रेतीले,मैदानी,वनाच्छादित,पठारी तथा विभिन्न भौगोलिक वातावरण मैं रहनेवाले जीव जंतु कुदरत के साथ अनुकूलन मैं होते हैं/जैसे बर्फीले इलाके मैं सफेद भेडें सफेद शेर ,वनाच्छादित इलाके मैं हरे सांप ,रेगिस्तानी इलाके मैं खाकी रंग के जीव जंतु ,पक्षी आदि/इन जंतुओं मैं अपना भोजन करने,दाना चुगने की आदतें भी इलाके के अनुसार अनुकूलन मैं होती हैं /छतीसगढ़ मैं धान खूब होता है/ इसे धान का कटोरा कहा जाता है/इस इलाके मैं चिडियों को धान चुगने की आदत होती है /जब धान की फसल कट कर घरों मैं आ जाती है तो चिदियांयेंक्या खाएं /वहां के लोगों को ,इसकी चिंता थी/वे धान की बालियों को सुई धागे से सीकर एक आयताकार रचना बनाकर घर के बरामदों,छत ,खेत पर झोंपडियों पर तंग देते हैं/ पक्षी बड़े आनंद से उड़ते उड़ते दाना चुग लेतेहैं/मगर जब यही रचना मैंने अपने घर मैं रतलाम मैं लटकन के रूप मैं तंगी टी पुरे एक वर्ष तक कोई पक्षी धान की और आकर्षित नही हुआ/म० प्र० और खासकर मालवा मैं धान होता ही नही /इन पक्षियों मैं धान खाने की न तो आदत होती है और न उसे धुन्धने की प्रवृति होती है /ये भोजन की आदत मैं भी अनुकूलन मैं होते हैं /

1 टिप्पणी:

रवि रतलामी ने कहा…

छत्तीसगढ़ में गौरैया (फुदकी) चिड़िया धान की बालियाँ सफाचट कर जाती हैं. वही मालवा क्षेत्र में धान पर मुँह ही नहीं मारती.
ये बात मनुष्यों पर भी लागू होती है. मैं छत्तीसगढ़ में था तो भात के अलावा कुछ खाता नहीं था. मालवा में 18 बरस गुजारने के बाद रोटी भली लगने लगी :)