मंगलग्रह पर जाने की तैय्यारी के क्रम मैं पांचसौ बीस दिन तक एक स्टील टुब मैं ४/ ७ लोगों को रकः गया. हालाँकि यह मिशन बहुत महंगा था. इसकी आलोचना भी हुई. किन्तु उल्लेखनीय यह है की इस मिशन मैं भारत के वैज्ञानिकों की कोई सहभागिता नहीं ली गयी. भू मंडली करण के दौर मैं वैज्ञानिक प्रयोगों मैं विकास शील देशों के युवकों की सहभागिता भी ली जानी चाहिए. विदेशी कम्पनियां हमारे देश मैं शून्य यांत्रिकी (जीरो टेक्नोलोजी)के उद्योगों मैं बढचढ कर भाग लेती हैं. जैसे बिसलेरी के पानी ,केन्चकी चिकन, साबुन तेल ,शेम्पो आदि. किन्तु अन्तरिक्ष ,और वैमानिकी के क्षेत्र मैं हमारे लोगों को प्रशिक्षित भी नहीं करती और न हमें वह ज्ञान ही प्रदान करती है. हमें हमारा रास्ता खुद ही खोजना होगा.
सोमवार, नवंबर 07, 2011
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