आजकल ओद्योगिक घरानों मैं एक परंपरा चल पडी है, और यह तब से बढ़ गयी है जब से भूमंडलीकरण आरम्भ हुआ है. एक और तो बड़े बड़े कर्पोराते सेक्टरों को बेल आउट पैकेज दिया जाता है जो १/२ करोड़ का नहीं बल्कि हजारों करोड़ों मैं होता है.जैसे अभी किंग फिशेर एयर लाइंस को घाटा हुआ है /नागरिक उड्डयन मंत्री वैय्लर रवि वित्तमंत्री से बात करेंगे और सर्कार से गुहार लगायेंगे की किंग फिशेर को बैल आउट पैकेज दे.ता की यह एयर लाइंस बंद न हो. क्या सर्कार ने कभी यह सोचा है की गाँव और शहरों मैं जो छोटे छोटे दुकानदार,मेकेनिक,ची नमकीन बेचकर गुजारा करने वाले कई बार संकट ग्रस्त हो जातें हैं ,उन्हें दुकान बंद कर देनी पड़ती है. राषट्रीय और राज्ज्य मार्गों पर कई खाने पीने की दुकाने,ढाबे,पंचेर सूधारने की दुकाने नुकसान के कारण बंद करना पड़ते हैं.इन छोटे छोटे संस्थानों के मालिक महगा और विलासी जीवन नहीं जीते. विजय मल्ल्या की तरह किसी क्रिकेट टीम को प्रायोजित नहीं करते. इनके लिए कभी बैल आउट पकेजे की बात सामने आयी क्या?राहुल बजाज भी कार्पोरेटसेक्टर मैं एक आदरणीय हस्ताक्षर हैं. उनकी सलाह कितनी सही है की घाटे के कारण यदि किंग फिशेर बंद होता हो तो हो. एक और सरकार कर्मचारियों के लिए परंपरागत पेंशन बंद कर नए नियम ला रही है.पेंशन को अंशदायी बनाकर उसे ब्बजार से जोड़ रही है. ता की बाजार घाटे मैं जाय तो पेंशन देने के लिए सरकार बाध्य नहीं. २००४ के बाद सेवानिव्व्रत होने वाले कर्मचारी को अंशदायी पेंशन होगी.सरकार क्यों कर पशचिमी देशो की नक़ल कर रही है. अमेरिका.ग्रीस.आदि शसक्त देशो की हालत आज क्या है?उनके उद्योग ,बैंके,घाटे मैं क्यों हैं?बार बार बैल आउट पैकेज देने के बाद भी वहां आर्थिक मंदी क्यों हैं/ इसके कारण खोजना तो दूर हम नकाची बन्दर की तरह अँधा अनुसरण ही किये जा रहें हैं/ जब की प्रधानमंत्री ने स्वयं जी ८ देशों के सम्मलेन मैं कहा है की भू मंडलीकरण का लाभ आम आदमी को नहीं मिल रहा है. सरकार इस दिशा मैं सोचे और ये बैल आउट पकेज देना बंद करे.किसान कृषि कर्जन देने के कारण अपनी बेल जोड़ी ,ट्रक्टर नीलम होने दे.और आत्म हत्या कर ले ,गरीब दुकानदार घटा होने के कारण दोकान बंद कर दे और भीख मांगने लग जाय.उसे कोई मदद नहीं और इन बेल आउट मांगने वाले आरब पतियों की विलासिता मई कोई कमी नहीं. कब तक चलता रहेगा?
मंगलवार, नवंबर 15, 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
जो जितना बड़ा वो उतना जुगाड़ू. ये बेलआउट उसी का परिणाम है. हमें आपको थोड़े ही मिलेगा बेलआउट!
आगे से हर बड़ी कंपनी नकली घाटा दिखा कर बेलआउट मांगेगी!
अब इस देश में यही होगा - पूंजीपतियों के घाटे का सार्वजनीकीकरण और किसानों के कर्जे का निजीकरण।
अपना निवेदन दोहरा रहा हूँ - कृपया वर्ड वेरीफिकेशन का प्रावधान तुरन्त हटाऍं।
एक टिप्पणी भेजें