रविवार, नवंबर 02, 2008
तीव्र और द्रुत संचार साधनों के बाद भी संवादहीन
दिवाली के बाद दिवाली कैसे गुजारी,कितना आनंद आया,कौन कौन मेहमान आए ,किन किन मित्रों के पुत्र ,पुत्रियाँ आ पाए नही आ पाए.ऐसे विषयों पर चर्चा होती ही है.जिन मित्रों के नन्दलाल और नंद्लालियाँ एन्गीनियरिंग,मेडिकल,या और किसी डिग्री कोर्स के लिए उज्जैन.इंदौर या भोपाल मैं हैं या जो किसी संसथान मैं कार्यरत है और पुणे,मुंबई,अहमदाबाद,बंगलोर मैं हैं हरेक के पास मोबाइल है.यदि ये आपके पास दिवाली मैं मिलाने आए हैं तो इनसे जायदा बातचीत करने का विचार छोड़ दीजिये.कारन यह की गाब तक आप इनसे बात का सिलसिला आगे बढायें इन्हे कल आ जाएगा.बात समाप्त करके ये नाश्ते का एक कौर लें न्लें दूसरा कल आ जाएगा .वापस आप बात आरम्भ करें रिशेतेदारों.नातेदारों के बारे मैं बताएं ,मीठी कैसे बनी ,नमकीन किसने बनाया चर्चा करें तीसरा कल आ जाएगा.स्वाभाविक है आप पूछेंगे .क्या बात है/ जवाब तय्यार है.मम्मी ने कम बताया था'',अंकल को अस्पताल मैं देखने जाना है,पिताजी ने सौदा लेन को कहा थे वैगेरे,वैगेरे .तात्पर्य यह की आप इनसे संवाद स्थापित कर ही नही सकते.और दिन बी दिन इनसे परिचय बढ़ने के बजायपरिचय और आत्मीयता कम होने लगती है। और यदि इनके तातश्री ने इन्हे दोपहिय्या दिलवा दिया है,तब तो क्या कहने ये और अधिक जल्दी मैं .मोबाइल और दोपहिय्यों वाली गाड़ी ने इन्हे बड़ों से संवाद स्थापित करने से वंचित कर दिया है.तीव्र और द्रुत संचार साधनों ने इन्हे संवाद हीन कर दिया है.
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3 टिप्पणियां:
सही बात है दूरियाँ नापने के चक्कर में इंसान ने नजदीकियाँ बिसार दीं।
आप कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें।
vikas ke chhakkar me hamane hi apni agali peedhi ko tvaran (acceleration) diya hai. Bhoutiki ke sidhant se ab apne aap to rukega nanhi, aur use rokane ki takat shayad hamare andar bachi nahi. Ab sirf parmeshwar par bharosa karana hai. (VISHWAS)
Yes it's true. Now the world is GLOBAL rather than LOCAL.
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