जूता ,चप्पल,घूंसा और लात संस्कृति आजकल बड़ी प्रचालन मैं है/ प्रशांत भूषण को लात से मारो.केजरीवाल पर चप्पल का प्रयोग करो, आदि आदि .उधर विधानसभाओं मैं माइक,कुर्सी फेंको,गंदे और असंसदीय इशारे करो. यह प्रजातान्त्रिक देश के लक्षण नहीं. चरवाक ने पुनर्जनम के सिध्हांतकी खिल्ली उड़ाई ,राजाशाई होते हुए भी किसी राजा ने चर्वक पर कोई कारवाही नहीं की. फिर प्रजातंत्र मैं ये बातें कैसे हो रही हैं/सत्ताईस रूपये के पीछे दिल्ली मैं हत्या हो जाती है,चाय ,नाश्ता के मामूली सवालों पर मारपीट .? हमारे समाज को हो क्या गया है. सहनशीलता .शांति ,सब कहाँ चली गयी. क्या हमारे धर्मोपदेशक सही सन्देश देने मैं असमर्थ हैं? क्या ये मठादिश केवल बड़े बड़े मठ बनाने,पत्रिकाएं निकालने ,धर्म के नाम पर केवल संपत्ति इक्कठी करने को ही धर्म समझ बैठे हैं? भगवान जाने इस जगदगुरू कहलाने वाले देश का क्या होगा.
मंगलवार, अक्तूबर 18, 2011
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1 टिप्पणी:
दरअसल सभी समस्याओं की एक ही जड़ नजर आती है - वो है अत्यधिक जनसंख्या. इसी की वजह से चहुँओर मारामारी मची है और कहीं कोई नियम कायदा कानून नहीं है, और न प्रजातांत्रिक तरीके से लागू किया जा सकता है.
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